गीता के छठें अध्याय में योगभ्रष्ट पुरुषों की गति के बारे में चर्चा की गई है । अर्जुन भगवान कृष्ण को प्रश्न करता है की अगर कोई साधक अचल श्रद्धा से संपन्न होने के बावजूद आत्मसंयम की साधना में विफल होता है और पथच्युत हो जाता है, तो उसकी क्या गति होती है ?
इसके उत्तर में भगवान कहते है की योगभ्रष्ट साधक का कभी अमंगल नहीं होता । उसकी ना तो दुर्गति होती है और ना ही विनाश । एसा साधक अपना शरीर छोडने के बाद कुछ समय तक उत्तम और पुण्यवान लोक में निवास करता है । फिर वो किसी शीलवान, पवित्र या जहाँ पहले कोई योगी हो गया हो, एसे घर में जन्म लेता है । यहाँ, अपने जन्मांतर संस्कारो के कारण उसका मन संसार के विषयों में नहीं लगता । वो बचपन से ही साधना के लिये प्रेरित होता है और प्रलोभनों से प्रभावित न होते हुए अंततोगत्वा अपने ध्येय की प्राप्ति करता है ।
गीता की यह बात सुप्रसिद्ध हो चुकी है । इसका परिणाम ये आया है की जैसे कोई लडका या लडकी छोटी उम्र में आध्यात्मिक अभिरुचि दिखाता है, लौकिक विषयों के प्रति उदासीन होता है, तो लोग उसे योगभ्रष्ट मानने लगते है । विवेकानंद, रामतीर्थ और दयानंद जैसे महापुरुषों ने छोटी आयु में महान काम किये थे । उनके उदाहरण देकर लोग कहते है की वे तो योगभ्रष्ट आत्मा थे, अपने साथ पूर्वजन्म के संस्कार लेकर आये थे । हम थोडे उनके जैसे हो सकते है ?
एसा ही अवतारी कहे जानेवाले महापुरुषों के बारे में है । जब कोई व्यक्ति लोकोत्तर शक्ति से संपन्न होता है, उसके जीवन में असाधारण कर्मों का दर्शन होता है, तो लोग उसे इश्वर का अवतार मान लेते है । जब कोई साधारण व्यक्ति अपनी महेनत के बलबूते पर जीवनविकास करके महान बनता है तो लोग उसे किसी अवतार के साथ जोड देते है । लोग ये मानने को तैयार ही नहीं है की कोई आदमी अपनी महेनत से महान हो सकता है । और जब उनकी बात निकलती है तो लोग कहते है की भाई, वो ठहरे अवतारी पुरुष और हम साधारण आदमी । हम उनके जैसे थोडे हो सकते है ? एसा कहके लोग नर से नारायण बनने का, मानव सहज विकास के आदर्श का, अनादर करते है । अपने आप को निर्बल तथा साधारण मानकर मनुष्य की ताकत को नजरअंदाज करते है । कोई मेरे कहने का ये मतलब न निकाले की अवतारी पुरुष जैसा कुछ नहीं होता और उनकी सारी बातें जूठ है । मेरे कहने का मतलब ये है की सभी असाधारण व्यक्तिओं को अवतार घोषित करना ठीक नहीं है ।
लघुता और निराशा प्रगति के लिये बाधाकारक है इसलिये मैं लोगों को इससे दूर रहने की सलाह दूँगा । अगर आदमी चाहे तो बहुत कुछ कर सकता है । वो किसी महान व्यक्ति के जीवन से प्रेरणा लेकर, उसके जीवनचरित्र पढकर, उनके जैसा बनने की कोशिश कर सकता है । उसे सिर्फ महान पुरुषों के चरणों में प्रणिपात करने या उनकी पूजा करके बैठे रहेना नहीं है । एसी दीनहीन और कंगाल मनोवृत्ति से उसे बचना होगा ।
अब मेरी बात करते है । मेरे बारे में अक्सर लोग बातें करते है की ये एक योगभ्रष्ट आत्मा है, इसका चालचलन हमसे भिन्न है । हम उसकी तरह साधना थोडे-ही कर सकते है ? हम तो ज्यादा-से-ज्यादा उनके पैर पकड सकते है, उनकी सेवा कर सकते है । तो कोई कहता है की ये तो अवतारी पुरुष है वरना इतनी छोटी उम्र में एसा आध्यात्मिक जीवन जीना थोडा मुमकिन है ?
मैं उन्हें प्यार से समजाता हूँ की मैं भी तुम्हारी तरह एक साधारण आदमी हूँ । मैंने भी एक आम आदमी की तरह अपने जीवन में मुसिबत और कष्टों का सामना किया है । मुझमें और तुम में फर्क सिर्फ इतना है की मैंने एक आदर्श मनुष्य की तरह ईश्वर को पाने के लिये, पूर्णता के शिखर पर आसिन्न होने के लिये प्रयास किये है । और एसा करके मैंने मनुष्य होने का जन्मजात फर्ज अदा किया है । इसका ये मतलब थोडा है की आप मुझे अवतार कहने लगो ?
फिर भी लोग अपना मत बदलने के लिये तैयार नहीं होते तो मुझे मौन रहना पडता है । अब बात निकली है तो मैं ये बता देना चाहता हूँ की मैं कोई योगभ्रष्ट आत्मा नहीं हूँ । एसा कहा जाना मुझे पसंद नहीं है क्यूँकि मुझे मिले अनुभव इसकी पुष्टि नहीं करते । मैं चाहता हूँ की भविष्य में भी कोई व्यक्ति मुझे योगभ्रष्ट कहने की चेष्टा न करें और अगर करें तो आप उसे न मानें । मैं इश्वर का एक साधारण बालक हूँ और लोग मुझे उसी तरह पहचाने ऐसा मैं पसंद करता हूँ ।