गृहपति के लिए प्रार्थना
मेरे आश्रमजीवन दरम्यान मुझे कइ छात्रों के संपर्क में आने का मौका मिला । हर साल कुछ छात्र संस्था को छोडकर जाते और कई और नये छात्र प्रवेश लेते । फिर भी सवा-सौ के करीब छात्र हमेंशा थे । हमारी एक अलग दुनिया थी जिसमें हम सब अपनी मौज में रहते थे । नौ साल के लंबे अरसे तक मैं उस संस्था में रहा और उसे अपने घर जैसा समझा । उन दिनों जो भी सिखा, आज भी याद है । उन दिनों की कुछ बातें मैं बताने जा रहा हूँ ।
जैसे की मैंने पहले बताया, गृहपति और बच्चों के बीच चूहे-बील्ली के संबध थे । बच्चें गृहपति को कोसते रहते । एक साल हमारे वर्तमान गृहपति की मृत्यु हो गई और उनके स्थान पर नये गृहपति नियुक्त हुए । उनका स्वभाव अच्छा था और उन्होंने संस्था में कुछ लाभदायक परिवर्तन भी किये । वो बिमार हो गये । डॉक्टर के ईलाज करने पर भी उनको अच्छा नहीं हुआ । गृहपति के परिवार के सदस्य बड़े चिंतित हुए । उस वक्त मुझे एक नया विचार सुझा । आश्रम में हररोज शाम प्रार्थना होती थी । प्रार्थना की शक्ति के बारे में मैंने थोडा-कुछ पढ़ा था । उत्कट हृदय से की गई प्रार्थना से प्रभु ने द्रौपदी की लाज रखी थी, गजेन्द्र का उद्धार किया था, नरसिंह महेता औऱ मीरां जैसे भक्तों को दर्शन दिया था । संतपुरुषो के जीवनचरित्रों में भी प्रार्थना के बारे में मैंने पढ़ा था । मुझे लगा की हमें गृहपति के लिए भी प्रार्थना करनी चाहिए ।
सुझाव तो अच्छा था मगर छात्रों को प्रार्थना के लिए कैसे समजायें ? छात्रों के मन में गृहपति की ओर कटु भावना थी इसलिए उनकी संमति पाना आसान नहीं था, फिर भी उनके सामने प्रस्ताव रखने की आवश्यकता थी । संस्था में गृहपति के गंभीर रुप से बिमार होने का यह प्रथम प्रसंग था । शाम को दैनिक प्रार्थना के वक्त मैंने हिंमत करके अपना विचार छात्रों के आगे रखा । मैंने कहा, 'आश्रम के सदस्य होने के नाते हमारा ये कर्तव्य है कि हम गृहपति के जल्दी सुधार की प्रार्थना करें । हम बच्चों की बिनती प्रभु जरुर सुनेगा । चाहे हमें गृहपति के लिए लगाव न हों फिर भी बिमारी और मृत्यु के वक्त कोई भी आदमी अपनी कटुता छोड देता है । एसा भी नहीं की सिर्फ हमारी प्रार्थना से ही वो बच सकते है । बचानेवाला तो ईश्वर है, हमें तो सिर्फ अपना फर्ज निभाना है । शायद ऐसा भी हो की हमारी दुआ से उनके स्वास्थ्य में आवश्यक सुधार हो और वो हमें प्यार की नज़र से देखने लगें । जो भी हो, मेरा यह दृढ मानना है की हमें गृहपति के सुधार के लिए प्रार्थना करनी चाहिए ।'
मेरे सुझाव के बारे में छात्रों ने क्या सोचा ये तो मैं नहीं जानता मगर उनके चहेरे बता रहे थे की उन्हें मेरा प्रस्ताव अच्छा नहीं लगा । कुछ समजदार छात्रों ने मेरे प्रस्ताव का स्वागत किया, बाकी बचे तरह-तरह की बातें करने लगे । उन्हें लगा की प्रार्थना के सुझाव के पीछे गृहपति का प्रिय छात्र होने का मेरा उद्देश है । फिर भी करीब सभी छात्र बैंठे रहें । हमने मिलकर गृहपति के सुधार के लिए ईश्वर से प्रार्थना की ।
क्या प्रार्थना करने से कोई फर्क पड़ता है ? लोग चाहे जो भी मानें, पर मुझे विश्वास है की सच्चे मन से की गई प्रार्थना ईश्वर अवश्य सुनता है । अगर एक आम आदमी भी किसीके गिड़गिड़ाने से उसकी बात सुनने के लिए राजी हो जाता है, तो ये तो दया के सागर, करुणानिधान ईश्वर की बात है । वो भला हमारे जैसे बच्चों की प्रार्थना क्यूँ नहीं सुनेगा ? थोडे ही दिनों में गृहपति अच्छे हो गये । हमारी प्रार्थना की बात सुनके उनको खुशी हुई और अनाथाश्रम के बच्चों के प्रति देखनेका उनका नजरीया थोडा बदला ।
प्रार्थना के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है । कभी-कभी प्रार्थना का उत्तर नहीं मिलने से आदमी निराश हो जाता है, श्रद्धा खो बैठता है । लेकिन हमें सोचना चाहिए की हमारी सभी प्रार्थना औरों के लिये लाभदायी न भी हो । अपनी सीमित दृष्टि से हम ज्यादा नहीं देख पाते, मगर ईश्वर सबकुछ देख सकता है । इसी वजह से वो हमारी प्रार्थना सुनने पर भी अनसुनी करता है । उस वक्त निराश होने के बजाय हमें ईश्वर की ईच्छा की मंगलमयता पर भरोंसा करना चाहिए और प्रसन्न रहेना चाहिए । क्या हमारी प्रार्थना से गृहपति अच्छे न होते तो हमारा प्रार्थना पर से विश्वास उठ जाता ? मैं ऐसा नहीं मानता । प्रार्थना का परिणाम तो ईश्वर के हाथ में है, हमारा काम तो ईश्वर से केवल अपने विचारों की अभिव्यक्ति करना है । यही हमारा अधिकार है और स्वभाव भी ।