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Swargarohan | સ્વર્ગારોહણ

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प्रश्न – आध्यात्मिक साधना में प्राणायाम का अभ्यास क्या सबके लिए जरूरी है ॽ उसके बिना साधना हो सकती है क्या ॽ
उत्तर – प्राणायाम का अभ्यास सबके लिए जरूरी नहीं है । इसके बिना भी साधना हो सकती है । प्राणायाम आध्यात्मिक साधना में अनिवार्य है ऐसा नहीं है । इसका आधार आपकी रुचि पर है । जिसे उसमें दिलचस्पी है वह यह अभ्यास कर सकता है । अलबत्ता इसका उपयोग युवावस्था में और अनुभवी पथप्रदर्शक की सूचनानुसार करना चाहिए नहीं तो व्याधि एवं मुसीबत पैदा होने का भय रहता है ।

प्रश्न – प्राणायाम का प्रारंभ किस तरह करना चाहिए ॽ
उत्तर – शुरुआत नाडीशोधन प्राणायाम से करनी चाहिए । इसे भस्त्रिका प्राणायाम भी कहा जाता है । इससे प्राणवायु की विशुद्धि होने के अलावा अन्य कई महत्वपूर्ण सहायता मिलती है । सूर्योदय से पूर्व खुली और ताज़ी हवा में बैठकर उसका अभ्यास कर सकते हैं । शाम को भी कर सकते हैं । परन्तु वर्षाऋतु में उसका अभ्यास न करना चाहिए । आरंभ के लिये शरद एवं वसंत ऋतु विशेष अनुकूल है ।

प्रश्न – सामान्य प्राणायाम कैसे कर सकते हैं ॽ
उत्तर – सामान्य प्राणायम की विधि इस प्रकार है – पद्मासन या सुखासन में सीधे बैठकर सबसे प्रथम दाहिने नाक से दो बार ॐ या राम (या अन्य कोई मंत्र) जपते हुए हौले से श्वास अंदर लें । बाद में आठ बार मंत्र जपने तक दोनों नाक बंद करके श्वास को भीतर रोक लें । अन्त में बाँये नाक को खोलकर चार बार मन्त्र जपते हुए श्वास को धीरे से बाहर निकालें । अब उसी नाक से दो बार मन्त्र पढ़कर श्वास को भीतर लें । फिर दोनों नाक बन्द करके आठ बार मंत्रजाप करते हुए श्वास को रोके रक्खें । तत्पश्चात् चार बार मंत्र बोलकर दाहिने नाक से श्वास को बाहर निकालें । फिर कुछ क्षण आराम करें । इस तरह एक प्राणायाम पूरा होता है । श्वास अन्दर लेने की क्रियाको पूरक, श्वास रोकने की क्रियाको कुंभक एवं श्वास निकालने की क्रियाको रेचक कहते हैं । पूरक की अपेक्षा कुंभक चार गुना तथा रेचक दुगना करना चाहिए, ऐसा स्वाभाविक नियम है । इसी नियम को ध्यान में रखते हुए उपरोक्त पध्धति अनुसार चार या पाँच प्राणायाम कर सकते हैं । प्राणायाम करते समय छोटा या बड़ा किसी भी मंत्र का आधार ले सकते हैं ।

प्रश्न – प्राणायाम से क्या क्या लाभ होते हैं ॽ
उत्तर – प्राणायाम से खास तौर से प्राण की शुद्धि होती है । श्वास, नाक और गले के अवयव मज़बूत होते हैं और शरीर में नया और ताज़ा वायु का संचार होता है । तदुपरांत रक्ताभिसरण की क्रिया में भी सहायता मिलती है । लेकिन ये सब तो स्थुल लाभ है । सूक्ष्म लाभ तो मन की स्थिरता व एकाग्रता का है । प्राण और मन में गहरा सम्बन्ध है अतएव प्राणायाम का असर मन पर अवश्य पड़ता है । इसकी मदद से मन की चंचलता दूर होती है । मन स्थिर होता है और शांति मिलती है । मन के विकार धीरे धीरे दूर होते हैं, और अंततोगत्वा मिट जाते हैं ।

प्रश्न – क्या यह सच है कि प्राणायाम करनेवाले को आहार का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर – हाँ, यह सच है । प्राणायाम करनेवाले को आहार एवं विहार का भी ध्यान रखना चाहिए अर्थात् ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा अत्यधिक निद्रा से छुटकारा पाना चाहिए । आहार में विशेषतः खाटे, खारे और तीखे व्यजंनो का त्याग करना चाहिए । रात को देरी से खाने की आदत छोड़ देनी चाहिए । प्राणायाम के अभ्यास में आगे बढ़ने पर भी थोडा समय सादा भोजन अथवा तो दूध और फल का सेवन करना पड़ता है । इसका मतलब यह हुआ कि प्राणायाम के साधक को जीभ पर विजय प्राप्त करना चाहिए और स्वाद पर भी विजयी होना चाहिए ।

- © श्री योगेश्वर (‘ईश्वरदर्शन’)

 

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