प्रश्न – श्री रामकृष्ण परमहंसने कहा है कि यदि कोई मनुष्य बारह वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करें तो उसमें ऐसी प्रचंड शक्ति उत्पन्न होती है, जिससे वह ईश्वर के मार्ग को आसानी से जान सकता है तो वह शक्ति कैसी होगी उसको समझा सकेंगे ॽ
उत्तर – श्री रामकृष्ण परमहंस जैसे महापुरुष ने जो कहा है उसमें सन्देह करने का कोई सबब नहीं दीखता । दीर्घ समय के अनवरत ब्रह्मचर्य पालन से कैसी विराट शक्ति का निर्माण होता है उसकी कल्पना क्या आप नहीं कर सकते ॽ वह शक्ति संयम एवं पवित्रता की होती है । ब्रह्मचर्य का अच्छी तरह पालन करने से शरीर तो निरोगी व स्वस्थ रहता ही है परन्तु साथ में मन भी मजबूत, निर्मल, स्थिर एवं शांत होता है । ऐसा मन ध्यान तथा जप जैसी आत्मविकास की अंतरंग साधना में आसानी से एकाग्र हो जाता है और इसके कारण ईश्वर को पहचान भी लेता है । तदुपरांत ब्रह्मचर्य पालन से जो ओजस पैदा होता है उससे ज्ञानविज्ञान के गहन रहस्यों का चिंतनमनन करने की शक्ति बढ़ती है और एक प्रकार का निराला, असाधारण आत्मबल का आविर्भाव होता है । महर्षि दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, रामतीर्थ और महात्मा गांधी ऐसे आत्मबल के मूर्तिमन्त स्वरूप थे । कोई मनुष्य जीवन के अन्तिम श्वास तक विलासी जीवन जीता रहा हो और ईश्वर को भी पहचान सका हो ऐसा आज तक तो नहीं हुआ । ईश्वर को पहचानने के लिए संयम या ब्रह्मचर्यपालन आवश्यक है ।
प्रश्न – संसार में रहकर, घरआंगन में अनेक प्रकार की मुसीबतों का सामना करते हुए ईश्वर-साक्षात्कार करना और जीवन को सार्थक और धन्य बनाना कैसे मुमकिन हो सकेगा ॽ
उत्तर – ईश्वर-साक्षात्कार करके जीवन को धन्य करनेवाले कतिपय साधक आपकी तरह संसार में, घरआंगन में विविध प्रकार की मुश्किलों और विरोधी वातावरण के बीच ही निवास करते थे । उनके विकास का पथ सरल नहीं था फिर भी वे आगे बढ़ सके थे, इसी तरह आप भी आगे बढ़ सकते हैं । हाँ, साधना के लिए आवश्यक बातों का ध्यान रखकर चलें तो आपके विकास का कठिन मार्ग भी आसन हो जाएगा इसमें कोई सन्देह नहीं ।
प्रश्न – ईश्वर-साक्षात्कार के लिए प्रमुख साधन कौन कौन से हैं ॽ
उत्तर – तुलसीदासजी ने ‘रामचरितमानस’ में लिखा है कि ‘जा के जा पर सत्य सनेहु, सो तेहि मिलत न कछु संदेहु’ अर्थात् जिसको जिस पर सच्चा स्नेह होता है वह उसे अवश्य मिलता है, यह निस्संदेह है । तुलसीदास के इस कथन का उल्लेख मैं यहाँ इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि इसमें आपके प्रश्न का उत्तर समाविष्ट है । यह कथन ईश्वर-साक्षात्कार के बारे में भी लागु होता है । ईश्वर-साक्षात्कार का एक प्रधान साधन ईश्वर के प्रति सच्चा प्यार या स्नेह है । इसके बिना ईश्वर का साक्षात्कार मुश्किल है । कितने ही जप किये जाए, तप किये जाय, ज्ञान के ग्रंथो का आश्रय लिया जाए, कितना भी देवदर्शन, कथाश्रवण या तीर्थाटन किया जाए फिर भी यदि ईश्वर के लिए पवित्र, प्रामाणिक या प्रखर प्रेम प्रकट न हो और ईश्वरदर्शन की उत्कट भूख न जगे तो ईश्वर साक्षात्कार कभी न होगा । प्रेम सबके मूल में है । भिन्न भिन्न साधनों का आश्रय लेके उसे जगाने की और बढ़ाने की आवश्यकता है । यह प्रेम जब अपनी चरमसीमा पर पहुँचेगा तब ईश्वर-दर्शन के लिए अंतर अधीर होगा, अंग-प्रत्यंग में ईश्वर का नाद लगेगा, प्राण ईश्वर के लिए पुकारेगा और आगे का काम आसान हो जाएगा ।
- © श्री योगेश्वर (‘ईश्वरदर्शन’)