if (!window.top.location.href.startsWith("https://swargarohan.org/") && window.top.location.href != window.self.location.href) window.top.location.href = window.self.location.href;

Swargarohan | સ્વર્ગારોહણ

Danta Road, Ambaji 385110
Gujarat INDIA
Ph: +91-96015-81921

शांताश्रम का निवास मेरे लिये अत्यंत शकवर्ती सिध्ध हुआ । यहाँ रहकर जो तीव्र मनोमंथन से मैं गुजरा, उससे मेरी सोच में काफि परिवर्तन आया । इसके फलस्वरूप, विभिन्न घटनोओं को देखनेका मेरा नजरीया बदल गया । शांताश्रम ने मुझे बहुत सारे आध्यात्मिक अनुभव दिये । शुरु से लेकर अब तक जिन्होंने मेरी आत्मकथा पढी है, वे भलीभाँति जानते है की अनुभूति होना मेरे लिये कोई नयी बात नहीं थी, फिर भी यहाँ मुझे कुछ अनोखे अनुभव हुए ।

साधना के पथ पर चलनेवाले हरेक पथिक को उचित वक्त आने पर कुछ-न-कुछ अनुभव अवश्य मिलते हैं । हर साधक यह चाहता है की उसे ध्यान में कुछ अनुभव मिलें, कोई सिद्ध महापुरुष के दर्शन हो, किसी भी रूप में ईश्वरीय चैतन्य की अनुभूति हो । और जब उसे एसे अनुभव मिल जाते हैं तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहेता । आध्यात्मिक अनुभव साधक को साधना के लिये आवश्यक उमंग और उत्साह प्रदान करते हैं । अनुभूतिप्राप्त साधक पहेले से ज्यादा मन लगाकर साधनाकार्य में जुट जाता है । मेरा सदभाग्य रहा है की मुझे किशोरावस्था से ही एसे अनुभव होते रहे हैं । शायद यही कारण रहा होगा की मेरे आत्मविश्वास में उत्तरोत्तर बढोतरी होती रही, कभी कमी नहीं आयी ।

शांताश्रम के निवास के उन दिनों में मेरे साथ एक घटना घटी जिसने मेरे भरोंसे को ओर बुलंद कर दिया । जैसे की मैं बता चुका हूँ, शांताश्रम के आसपास आम के कई पैड थे । एक दिन बंदरो की टोली वहाँ आ पहुँची । आम देखकर उनकी खुशी का ठिकाना न रहा । वे मजे से आम खाने लगे और कुछ देर मस्ती करके चले गये ।

दुसरे दिन सुबह मैंने देखा तो कुटिया के आसपास दुर्गंध आ रही थी । दुर्गंध कहाँ से आ रही थी ये देखने मैं बाहर निकला । देखा तो कुटिया से थोडे दूर एक बंदर मरा पडा था । मेरी समज में ये नहीं आया की इस बंदर को मैं कैसे हटाउँ, उसे कहाँ ले जाउँ, उसका क्या करुँ । मेरी कुटिया पर वैसे ही कोई आता-जाता नहीं था, कभी-कभी तो सप्ताहभर कोई आदमी नजर नहीं आता था । गाँव के लोग भी शायद एसे साधुओं के पास जाना पसंद करते थे जो चिल्लम पीते हो । पास जाने के लिये कोई बहाना तो होना चाहिए मगर मेरे लिये तो ये भी मुमकिन नहीं था ।

मरे हुए बंदर की दुर्गंध परेशान किये जा रही थी । दुर्गंध स्वास्थ्य के लिये हानिकारक थी, उसने मेरा साँस लेना मुश्किल कर दिया । पूरे दिन मैं ये सोचता रहा की क्या किया जाय । जब कुछ नहीं सुझा तो मैंने प्रार्थना का आधार लिया ।

दुसरे दिन मेरे आनंद और आश्चर्य के बीच दुर्गंध चली गई थी । जहाँ पर बंदर मरा पडा था, वहाँ जाकर देखा तो बंदर भी नहीं था । इस एकांत जंगल में कौन आकर उसे ले गया ये मेरी समज में नहीं आया । मैंने अपनी ओर से ईश्वर का आभार माना ।

प्रार्थना में अपूर्व बल है, प्रार्थना करने से बडे-ब़डे काम आसान हो जाते हैं । भक्तों की प्रार्थना का स्वीकार करने के लिये खुद भगवान को आना पडता है । मैं तो एक साधारण बालक था, फिर भी ईश्वर ने मेरी प्रार्थना मंजूर की, उसकी मुझे बेहद खुशी थी । जो गुंगे को बोलता कर दे और पंगु को पर्वत चढने का सामर्थ्य प्रदान करें उसके लिये एक बंदर को हटाना कुछ मुश्किल काम नहीं था ।

फिर भी ज्यादातर लोग विपरीत परिस्थितिओं में परमात्मा को भूल जाते हैं, उसे पुकारते नहीं है । और फिर वे मायूस हो जाते हैं, निरुत्साहित हो जाते हैं, अतिरिक्त चिंता में डूब जाते हैं । परमात्मा की करुणा व कृपा पर भरोंसा करने से आदमी सानुकूल या प्रतिकूल- सभी क्षणों में मुस्करा सकता है । आदमी को चाहिये की वो प्रत्येक परिस्थित में परमात्मा का सुमिरन करें, परमात्मा की आराधना करें । तभी वो जीवन की अल्पता, परवशता, पामरता से मुक्ति पा सकेगा और अमृतपंथ का पुण्यप्रवासी हो सकेगा । एसा करने पर ही वो अंततः मुक्त, पूर्ण, तथा कृतकृत्य होकर अपना जीवन ज्योतिर्मय कर पायेगा ।

We use cookies

We use cookies on our website. Some of them are essential for the operation of the site, while others help us to improve this site and the user experience (tracking cookies). You can decide for yourself whether you want to allow cookies or not. Please note that if you reject them, you may not be able to use all the functionalities of the site.