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Swargarohan | સ્વર્ગારોહણ

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गीता के एक प्रखर विद्वान एवं परम प्रेमी ने बात–चीत में मुझसे कहा था –“गीता ऐसा रत्न है, जिसका संसार में कोई सानी नहीं । कितना अद्भुत है उसका ज्ञान ! श्री कृष्ण ने जीवन में अनेक प्रकार की लीलाएँ की, अनेक कर्म किये, किन्तु गीता को गाने की लीला अधिक सुशोभित हो उठी । सब कामों से उनके गीतोपदेश का कार्य श्रेष्ठ है । भगवान श्रीकृष्ण का हृदय पूर्णत: कहाँ पर व्यक्त हुआ है । उनकी वाणी, रस एवं प्रेरणा के सर्वोच्च शिखर पर कहाँ पर पहुंची है ? उनके बहुर्मुखी जीवन का रहस्य कहाँ पर खुलता है ? उनके जीवनकी फ़िलासफ़ी सरल, सपष्ट एवं प्रभावोत्पादक ढंग से तथा संपूर्णतया कहाँ पर प्रगट होती है ? इसके उत्तरमें यह कहना आनावश्यक न होगा की गीता मैं और सिर्फ गीता मैं । इसीलिए तो गीता को भगवान ‘श्रीकृष्ण का हृदय‘ कहा जाता है ।

जो सिद्धान्त उन्हें प्राणों से भी अधिक प्रिय थे और जिन पर श्रध्धा रखकर वह इस जगत में जिये थे, उन सिद्धान्तोकों संसार के हितार्थ गीता के गौरवान्वित ग्रन्थ में समाविष्ट किया है । उसके अनुसार आचरण कर जो चाहे वह अपना जीवन व्यतीत कर सकता है । मेरे लिए तो गीता उत्तम एवं जीवन का दर्पण है, जिसका उपयोग मैंने बहोत समय से किया है और जिनकी सहायता से मैंने मन एवं अन्तर की मलीनता को दूर करने का साहस किया है ।

गीता मुक्त या पूर्ण जीवन की कुंजी है । उस कुंजी की सहायता से कोई भी व्यक्ति आदर्श जीवन के मन्दिर में प्रवेश कर सकता है तथा धन्य भी हो सकता है । जगत में पैदा होने के बाद माँ के दूध से एवं बाद में अनाज से मेरे शरीर का पोषण हुआ है, किन्तु मन का पोषण तो गीता के अमृत से हुआ है । बचपन ही में माता-पिता की मृत्यु हो गई और मैं अनाथ एवं निराधार हो गया, किन्तु किसी पूण्य के कारण मुझे गीता का सहारा मिल गया । गीता से मैं सनाथ हुआ तथा माता-पिता के सुख से भी अधिक सुख मुझे मिला ।

गंगा के दर्शन, स्नान एवं पान के लिए प्रत्येक भारतीय का दिल तड़पता है । इसके लिए मेरे दिल में भी तीव्र उत्कंठा थी, पर गीता आनन्द मिलने के बाद वह इच्छा भी शान्त हो गई अथवा यों कहिए कि पुरी हो गई । भगवान श्री कृष्ण के ज्ञान विज्ञान रुपी हिमालय से निकली हुई गीता गंगा मेरे लिए सच्ची गंगा हो गई और उसके स्नान और पान का नशा मुझ पर चढ़ गया । वह नशा हानिकर नहीं, बल्कि हितकर साबित हुआ ।

एक बात और कहूँ ? कृष्ण की भाँति व्यास मुनि के बारे में भी समझना है । व्यास ने वैसे तो अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया है, परन्तु गीता लिखने में तो उन्होंने कमाल कर दिया है । इस गीता के गौरव के बारे में क्या कहूँ? उसके लिए मेरे दिल में जो आदर है, उसे किस प्रकार अभिव्यक्त करूँ ? मुझे तो बार बार यह विचार आता है –“यदि दुनिया के दुसरे सब ग्रन्थ समुद्र में डूब जाये और एक मात्र गीता ही शेष रह जाय, तो भी दुनिया को कोई कमी महसुस न होगी ।”

गीता के विषय में उनके शब्द अत्यन्त प्रभावोत्पादक थे इसमें सन्देह नहीं, लेकिन सब पुस्तकों के समुद्र में डूब जाने की कल्पना मुझे अच्छी न लगी । गीता की महत्ता साबित करने के लिए इतनी हद तक बढ़ने की आवश्यकता नहीं । एक बुद्धिमान का आदर करने के लिए हम अन्य बुद्धीमानों को मार डालना नहीं चाहते । यह तो ऐसा होगा की कोई माली उद्यान के सभी खूबसूरत फूलों कों चुनकर जला डाले और बाद में बचा हुआ एक गुलाब का फुल – जो उसे सबसे अधिक प्रिय है - सबको दिखाये और कहे – “देखा आपने? कितना सुन्दर है यह फूल ! ऐसा सुगन्धित एवं सुन्दर फूल दूसरा क्या इस बाग़ मैं है ?” अथवा कोई चित्रकार अपने सब चित्रों का नाश कर दें और एक सबसे अधिक खूबसूरत चित्र का ही गुणगान गाया करे ।

जहाँ चन्दन के वृक्ष ही नहीं होते, वहाँ उन वृक्षों की कद्र की जाय, इसमें क्या आश्चर्य ? बेवकूफों के देश में कोई एक भी विद्वान हो और वह पंडित शिरोमणि कहलाये, इसमें क्या अचरज ? अथवा जहाँ एक ही मनुष्य बसता है और वही राजा कहलाए, तो उसकी क्या महानता ? हमें यह बात पसन्द नहीं । मैं तो माली के बाग़ के सभी फूलों को संचित करने के पक्ष में हूँ । उन फूलों में कौन सबसे अधिक सुन्दर और सुवासित है, उसका विचार बादमें करेंगे ।

चित्रकार के सभी चित्र भले ही मौजूद रहें, तथा सब बुद्धिमान पुरुष भले ही जीवित रहें, और यावच्चन्द्र दिवाकरौ जिएं । हमें कोई आपत्ति नहीं । सबको तुलना करके जो उत्तम साबित होगा, उसीको हम पसन्द करेंगे और सम्मान देंगे । आसमान में अनेक सितारे, चन्द्र, ग्रह एवं नक्षत्र होने के कारण ही सूर्य के प्रकाश की महिमा प्रतीत होती है । सूर्य को श्रेष्ठता प्रदान करने तथा सूर्य की अनुपस्थिति में भी अपना कार्य करने के लिए वे सभी प्रकाश पुंज भले ही जियें ।

बसन्त को ऋतुराज माना जाता है और उसकी अत्याधिक प्रशंशा होती है, किन्तु उसकी तारीफ़ करने के लिए अन्य सब ऋतुओं के विनाश की कल्पना करने की आवश्यकता नहीं । अन्य ऋतुएं उसके गौरव को कम नहीं करती, अपितु बढ़ाती हैं । इसी तरह दुनियां के भिन्न-भिन्न सभी ग्रन्थ भले ही लम्बे अरसे तक मौजूद रहें तथा भिन्न-भिन्न लोगों को प्रेरणा, प्रकाश एवं आशा भले ही दिया करें । उन सबकी मौजूदगी में भी गीता का गौरव विद्यमान रहेगा तथा उसकी शोभा भी बनी रहेगी ।

- © श्री योगेश्वर

 

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